भोपाल. "बिना सहकार नहीं उद्धार" प्रदेश सरकार के मुखिया शिवराजसिंह चौहान सहकारिता की इस टैगलाइन को राज्य के विकास का मूल मंत्र बनाना चाहते हैं। खासकर कृषि और पशुपालन के क्षेत्र में। इसके लिए सहकारिता विभाग की समीक्षा बैठक में उन्होंने प्राथमिक सहकारी ऋण समितियों (पैक्स) को मजबूत बनाने पर विशेष जोर देने को कहा है। लेकिन मप्र में सहकारिता सेक्टर की जो हालत है उसे देखते हुए नई टैग लाइन कही जा सकती है कि "न सहकार, न उद्धार, सिर्फ भ्रष्टाचार।" ऐसा इसलिए क्योंकि प्रदेश में 8 हजार करोड़ रुपए के अनुदान के बाद भी करीब 4,500 सहकारी साख समितियों की माली हालत बेहद खराब है। बीते तीन सालों में सहकारी बैंकों के करीब 150 करोड़ रुपए के घोटाले सामने आ चुके हैं। प्रदेश में सहकारिता और इससे जुड़ी संस्थाओं के बंटाधार के लिए विपक्ष के साथ अब बीजेपी के नेता भी उंगली उठा रहे हैं। हाल ही में इंदौर-5 विधानसभा क्षेत्र के विधायक और पूर्व मंत्री महेंद्र हार्डिया ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर सहकारी संस्थाओं की बदहाली पर चिंता जताई है। द सूत्र ने खास पड़ताल के जरिए ये जानने की कोशिश की कि आखिर प्रदेश में कैसे बेपटरी हुई सहकारिता और कौन है इसके जिम्मेदार।